Tuesday, September 23, 2008

एक शहर है

माना कि यहां हर किसी के दिल में बसता
अपना ही एक शहर है।
जहां न ख़त्म होने वाली कई ऐसी पहर हैं,
जिसमे कोई डूबा तो कोई किनारे खड़ा है।
बस, अपने बनाए रिश्तों के आंचल में पड़ा है।

ये वो एक शहर है, जहां रातों को जागता है कोई,
अपनी इच्छाओं की तस्वीरों के पीछे भागता है कोई,
इन्ही दौड़ में मन्जिलों को पा गया है कोई,
नहीं तो अपनी ही राहों मे खो गया है कोई ।

चाहतों का भूखापन यहां बेसब्र है,
थककर ठहर गया है कहीं, ये वो एक शहर है।

हाथों में समय बांधे घर से निकलते हैं लोग,
दोस्तों की कहानियों को सुनकर पिघलते हैं लोग,
ऑखों के इशारों से, किसी को बुला रहा है कोई,
बेख़बर होकर अपनी यादों मे, किसी को झुला रहा है कोई,

कच्ची कहानियों से महकती, यहां हर डगर है,
बिना रूके सुनता है वो सब, ये वो एक शहर है।

एक शहर है, जो सड़क के किनारो पर नज़र आता है,
एक शहर है, जो अपनी कहानियों से रिश्ते फैलाता है,
कहीं अपने अन्दाज़-ए-बयां से नये माहौल सजाता है,
अन्जान और अजनबी जैसे रिश्तों को हमसफ़र बनाता है,

हम जिसमे और जो हम में डूब गया है,
ये वो शहर है, जो हर किसी के दिल में बसा है,
कल्पना बनकर जो उड़ रहा है, ये वो परिन्दा है।
यही एक शहर है, जो कहानियों मे जिन्दा है।

लख्मी कोहली

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