Tuesday, December 30, 2008

भाई का प्यार

चारों तरफ शौर ही शौर था। कुछ भी बदला हुआ नहीं था ना तो बाहर का नज़ारा और ना ही अपने साथ में बितता समय। सब कुछ वैसा का वैसा ही था। बस, लोगों के आने-जाने मे नज़र लोगों से छुपने का ठिकाना ढूँढ रही थी।

तभी किसी ने जोर से आवाज लगाई, “क्या हुआ भाई बाहर क्यों बैठे हो?”

ये बोल क्यों निकल रहे थे इसका पूरा अन्दाजा था भाई को। वे उसकी तरफ में देखते हुए बोले, “बेटा मज़े मत ले, तने भी खूब पता है कि क्यों बैठा हूँ मैं यहाँ!”

अपने डराने और समझाने वाले अन्दाज में उन्होंने इशारा कर दिया था। ये आज की ही बात नहीं थी। भाई से इस तरह के मज़े लेने के लिए कई लड़के अक्सर तैयार रहते हैं। बस, किसी दिन भाई को गली के कोने पर बैठा हुआ देखले बस। समझों भाई से आज बेइन्तहा मज़े लिए जा सकते हैं। आज का दिन उनका ऐसे ही कटने वाला था। इससे पहले की कोई और आकर मज़े ले जाये उससे पहले कहीं चले जाये तो अच्छा है। वे गली के कोने पर बैठे बस, यही सोचने मे अपना टाइम निकाल रहे थे। कभी-कभी तो अपने में बुड़-बुड़ाने लगते, “क्या ज़िन्दगी है, साला हम तो कुंवारे ही ठीक थे। क्या रौब था अपना, अब देखो लानत है।"

ये दोहराते हुए गली के बाहर की दूसरे कोने पर मुरारी जी की एसटीडी की दुकान पर चले जाते। मुराजी जी इस वक़्त मे बहुत व्यस्त रहते हैं। मोबाइल से भरी इस दुनिया में लोकल फोन की भरमार अब भी कम नहीं है। एसटीडी तो नहीं लेकिन लोकल फोन बहुत होते हैं। वैसे भी लोगों को बूथ चाहिये। वो मिला तो बस, बातें शुरू। भाई तो हमेशा इससे बहुत गुस्सा खाते हैं। कभी-कभी तो मुरारी जी को धमका भी देते हैं कि, “मुरारी तू ये बूथ हटा दे, क्या साला आशिकों की लाइन लगवा कर रखता है हमेशा।"

मुरारी जी भाई से हमेशा कहते, “यही तो हमारे देव हैं। इन्ही से ही तो रोजी-रोटी चलती है हमारी और भाई तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे तुम तो कभी गए ही नहीं इस दुनिया मे, भूल गए क्या भाई?”

"अरे, मन्ने याद मत दिला। जीवन में एक यो ही तो गलती से मैंने, इब तक भुगत रहा हूँ। जाने है, जिससे मैंन्ने बात कि थी फोन पर वो ही सिर चड़के बैठी से म्हारे सिर पे।" भाई बिना रूके हुए बोले थे। नज़र कहीं रूक ही नहीं रही थी।"

मुरारी जी कहते, “क्या भाई तुम तो वैसे ही बदनाम करते हो हमारी भाभी को।"

भाई इस बात पर फिर से अपने डराने वाला अन्दाज मे बोले, “हाँ बेट्टे, तू भी ले-ले मज़े। पता है ना तन्ने कोन हूँ मैं?”

"क्या कह रहे हो भाई, तुम तो जानते ही हो, मैं तो कभी मज़े नहीं लेता आपसे। अच्छा भाई ये बताओ, फिर से चौकी कब लगवा रहे हो अब? सुना है, पुलीस वाले आजकल मना करते हैं चौकी लगाने के लिए?” मुरारी जी ने कुछ सुनने के लिए कहा।

भाई अपनी भवों को ऊपर चड़ाते हुए बोले, “हमें भी मना करेगा कोई, के बात कर रहे हो मुरारी जी?”

ये कहते हुए भाई बाहर में आकर खड़े हो गए। बाहर मे आते-जाते लोगों को देखने लगे। अन्दर आकर कहने लगे, “मुरारी यो अपनी ही गली बाहर ही लगा दे चौकी तो कैसे रहवेगा?”

मुरारी जी उस तरफ मे देखते हुए बोले, “भाई ठीक है, पर पर्मिशन तो लेनी पड़ेगी ना!”

भाई उसकी दुकान से फोन करने लगे। उन्होंने जल्दी से एक नम्बर मिलाया और फोन पर बात करने लगे, “हाँ, सरजी मैं बोल रहा हूँ, एक बात कहनी से, के माता की चौकी लगाने के लिए भी अब पर्मिशन लेनी पड़ेगी के?”

उस तरफ की बात के जवाब देते हुए बोले, “अरे सरजी हमारी पर्मिशन तो आप हैं। समझ रहे हैं ना सरजी, तो मैं तो लगा रहा हूँ, और हाँ, आप भी आ जाना परिवार समित, मैं बंजारा भाई और नरेंद्र चंचल जी को बुलावा लेता हूँ।"

मुरारी जी की तरफ मे देखते हुए वे फिर से बोले, “ले मिल गई पर्मिशन, बाबू ये समाज अभी हमारी पावर ने जाने ना है, के चीज से हम। इब लगा चौकी और देख के धमाल करे हूँ मैं।"

मुरारी जी बोले, “भाई मुझे तो पहले से ही पता था की आप करवा दोगें ये सारा काम। तभी तो आपको कहा मैंने। अबकी करेगें बहुत ही जोर-शौर से माता का जागरण।"

"बेट्टे यो ऐसे ही ना हो जाता, घंड़ी मार खानी पड़े है। हमने भी बहुत मार खाई से इन सभी की, और कई रातें वो काली कोठरी मे बिताई से। मगर इब सब समझ मे आ गया है। यो के चाहवें हैं और हमें के करना से। ऐसे ही चले हैं खेल। मगर भाई यो भी घंड़े चालु होवे हैं एक काम करेगें तो ना जाने कितने हमसे करवा लेवे हैं। जब हम मना ना करते इनके काम की तो इनका भी तो कोई फ़र्ज़ बने हैं ना।" भाई मुरारी जी की तरफ मे अपनी पूरी निगाह को गड़ाते हुए ये बोले थे।

मुरारी जी उनकी तरफ मे देखते हुए बोले, “भाई एक बात कहूँ, सब कुछ बदल गया लेकिन एक बात नहीं बदली आपके अन्दर। आपका फोन पर बात करने का तरीका, वैसा का ही वैसा ही है। याद है ना भाभी से कैसे बात की थी आपने!”

भाई मुस्कुराते हुए मुरारी जी की तरफ मे देखने लगे और थोड़ा बाहर की तरफ मे देखते हुए बोले, “उज्जड़ तरीका है ना मेरा? यही कहना चाहवे है ना तू। ले-ले फिर से मज़े। पर देखले यही तरीका काम आवे है, चाहे लव हो या काम। यही तरीका करवाये है पूरा उसने। देखले चौकी भी लग गई और कैसी तितली सी भाभी है तेरी।"

मुरारी जी उनकी तरफ छेड़ने के अन्दाज मे बोले, “हैं सच्ची तितली सी है मेरी भाभी। भाई उस दिन के बारे मे हमें तो कुछ बताओ ना।"

"ले-ले फिर से मज़े, बेट्टे बहुत मज़े ले रहा है तू आज। पर कोई ना। तेरी कसम बहुत याद आवे वे दिन। मेरे साथ मे लाले था। हमने तेरी कसम, भाई पूरी रात पी थी। सारे ब्रांड खींच लिये थे हमने। वे मन्ने बार-बार अपनी बन्दी का फोन स्पीकर ऑन करके बात सुनवा रहा था। मेरा दिमाग ख़राब हो रहा था। साला, हमेशा ही जब भी उसकी बन्दी का फोन आता वे स्पीकर ऑन कर लेता और मन्ने सुनाता। मैंने भी एक पटियाला डकारा और पँहुच गया वो पीछे वाली एसटीडी की दुकान पर। लाले भी था मेरे साथ मे और भाई तेरे भाई ने मिला दिया फोन, मेरे भाई के ससुराल मे एक पड़ोस की बन्दी थी मेरे से बहुत मजे लेती थी वे, मैंने उसको ही फोन कर दिया।"

लड़की ने फोन उठाया, “हैलो कौन?”

भाई, “मैं बोल रहा सूँ तेरी सहेली का देवर, पहचान लिया के?”

लड़की ने कहा, “कौन सी सहेली के देवर हैं आप? मैंने पहचाना नहीं।"

भाई ने कहा, “अरे तेरे साथ वाली सहेली, सुनैना का देवर बोल रहा सूँ मैं। इब पहचाना के?”

लड़की ने कहा, “जी नहीं, मैंने नहीं पहचाना।"

भाई ने कहा, “अरे ओ, पहचान गई चूल्हे मे, तू मेरी बात सुन। बहुत दिनों से कहना चाहूँ हूँ, सुन रही है के?”

लड़की ने कहा, “हाँ, सुन रही हूँ मगर आप कहना क्या चाहते हैं?”

भाई ने कहा, “अरे मैं यो कहना चाहूँ, मन्ने रात मे नींद ना आती, साला पानी पीवे हूँ तो तू ही नज़र आवे है मन्ने। म्हारा काम मे जी ना लगता। मैं पागल सा हो गया हूँ, रोटी खावे हूँ तो मन्ने तेरा ही चेहरा दीखे है, के करूँ मैं। मन्ने लागे है मन्ने इश्क हो गया है तेरे से। सुन रही है के?”

लड़की ने कहा, “अच्छा जी, इश्क हो गया है, किससे?”

भाई ने कहा, “अरी वावली तेरे से हुआ है मन्ने इश्क।"

लड़की ने कहा, “तुम जानते हो ना मेरे भाई क्या हैं यहाँ के?”

भाई ने कहा, “अरी छोरी तेरे भाई मन्ने ना जानते, मैं वो हूँ जो बन्दो के घर मे घुसकर फैसला करे हूँ। मन्ने धमका मती।"

लड़की ने कहा, “अच्छा, देखलो कहीं तुम्हें ही ना उठवा ले घर से।"

भाई ने कहा, “ओए लाले ये कह रही है जरा देखिओ, मेरे से कह रही है इसके भाई मन्ने उठवा लेगें घर से, जरा समझइयों इसने।"

लाने ने कहा, “हाँ भाभी जी, भाई सही कह रहा है, इसको प्यार हो गया है आपसे, पूरी रात आपके बारे मे ही बात करता है और भाभी जी भाई को धमकाओ मत ये बहुत गुस्से वाला बन्दा है। बस, ये आज सच कह रहा है। बात मानलो इसकी।"

लड़की ने कहा, “हैलो भाई, मैं भाभी नहीं हूँ आपकी।"

भाई ने कहा, “सही कह रहा है लाले, अरे तू समझे क्यों ना है, अरी मैं तेरे से सच्चा प्यार करे हूँ, आज मैंन्ने इतने प्यार से किसी से बात की है और मैंन्ने किसी की तरफ मे यो निगाह भी नहीं डाली है। मन्ने सच्ची मे इश्क हो गया है तेरे से। म्हारा काम छूट गया है तेरे चक्कर मे। जिब जी ही नहीं लगता था तो साले मालिक ने कह दिया कि जाओ इश्क करो काम करने की क्या जरूरत है। इब बता यो पता है तेरे को, कोई बन्दी के लिए काम छोड़े है भला। मन्ने सच मे इश्क हो गया है तेरे से। समझ जल्दी।"

लड़की ने कहा, “क्यों पैसे ख़त्म हो गए हैं क्या कॉल के? चलो अब तो मैं अपने भाईओ को बता कर ही रहूंगी। जब देखती हूँ कितना दम है तुममे।”

भाई ने कहा, “ऐसा है कहदे अपने भाईओ से, ले म्हारा पता लिखले। म्हारा दम देखना चाहवे है ना तो यो ही रहा। मैं भी तेरे घर के बाहर मे आकर ना खड़ा हुआ तो म्हारा भी नाम ना। चल इब फोन काट।"

मुरारी जी अब चुप थे। भाई भी बाहर की तरफ मे चले गए थे। थोड़ी देर के बाद मे एक लड़का दुकान मे आया और सीधा टेलीफोन बूथ मे घुसते हुए बोला, भाई साहब फोन मत कटने देना।"

भाई उसकी तरफ मे देखने लगे और उसको पूरा ऊपर से नीचे देखते हुए उसकी तरफ देखकर हंसने लगे। मुरारी जी उनकी हंसी को समझ गए थे। मगर कुछ बोले नहीं। भाई बाहर आकर खड़े हो गए। एक लड़का दोबारा दुकान के बाहर से निकलता हुआ बोला, "क्या हुआ भाई अभी तक गए नहीं घर?” भाई हंसने लगे।

लख्मी

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