Thursday, January 15, 2009

हड़ताल में पूरा शहर है अटका

ज़िन्दगी के आठ दिन
कटे तारे गिन-गिन
राशन ख़त्म, भाषण ख़त्म
हुआ बाजारों में आने वाला माल ख़त्म
माँगे बनी हड़ताल का कारण
प्लेटफ़ोर्म ख़ाली रेल बिन
गाड़ी रुकी तेल बिन

जिसको देखो सिर पकड़े बैठा, टूटे हड़ताल इस ताक में रहता
पर हड़ताल एक सच्चाई है, जिसने अत्याचार पर आवाज उठाई है
एक ही मुद्दा नहीं अपने बीच यारों, न जाने कितने मुद्दों की तो अभी बारी नहीं आई है
मंदी की चपेट में आया जीवन, सरकार ने ऐसी कूटनिती कुछ ऐसी बनाई है

इन आठ दिनों ने दिया है झटका
हड़ताल में पूरा शहर है अटका
जब टूटी हड़ताल तो सब का दिल मटका

रुक न जाये अर्थव्यवस्था का पहिया
जरा जमकर जोर लगाना भईया
खुली हड़ताल तो राहत पाई है
माँगे पूरी हुई तो सूकून से रोटी खाई है।

राकेश

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