Tuesday, January 13, 2009

ये नोर्मल तस्वीर क्या है?

कल एक अजीब सी बात हुई, ये बहुत ही सोचने के लायक थी। ऐसा नहीं है कि ये कभी सुना या सोचा नहीं है लेकिन ये तो एकदम गज़ब ही था। कल मेरा जाना एक सरकारी दफ़्तर में हुआ। जिसमे मुझसे कुछ डॉकोमेन्टस माँगे गए। जैसे- राशन कार्ड, पासपोर्ट साइज़ फोटो, स्कूल का सार्टीविकेट, वोटर आई कार्ड वगैरह। उसके साथ-साथ एक फोर्म भी भरना था जो उन्ही ने ही दिया था। मैं वो फोर्म भरकर और ये सारे काग़जात लेकर उसी ऑफिस मे पँहुच गया। उन्होंने मेरे सारे काग़जात देखे और फोटो को देखते हुए कहा, "ये क्या तस्वीर है? आपको पता नहीं है कि पासपोर्ट साइज़ की तस्वीर कैसे खिंचवाई जाती है, इसमे चेहरे को नोर्मल रखना होता है। ये क्या तस्वीर। है? ये नहीं चलेगी, जाइये दोबारा लेकर आईये।"

उनकी ये बात सुनकर मैं वापस अपने घर चला आया। मैंने कोई बेकार तस्वीर थोड़ी खिंचवाई थी। मेरा एक दोस्त गोविंदा का बहुत बड़ा फैन है तो वो जब भी तस्वीर खिंचवाता था तो अपने चेहरे को हमेशा गोविंदा अंदाज़ में बना लेता था फिर चाहें वो पासपोर्ट साइज़ की तस्वीर हो या पोस्टकार्ड साइज़ की। मैंने भी तो कुछ ऐसा ही तो किया था। इसमे हर्ज़ ही क्या था?

मगर उस ऑफिसर ने कहा था की नोर्मल तस्वीर होनी चाहिये। ये रटता हुआ मैं फोटोग्राफर के पास में गया। उससे मैंने कहा, "भाई साहब एक पासपोर्ट साइज़ में तस्वीर खिंचवा‌नी है लेकिन फोटो नोर्मल होनी चाहिये।"

वे ये सुनकर हँसने लगा और कहने लगा, "सर चिंता मत किजिये आप, फोटो एकदम नोर्मल होगी।"

उसने मुझे अपने अन्दर वाले कमरे में बैठा दिया। सामने का पर्दा लगाया और लाइट को बन्द कर दिया। ये एक छोटा सा कमरा था। यहाँ का नया फोटोस्टुडियो था ये। पीछे सफेद रंग का पर्दा खींचा और सामने लगी टेबल पर उसने मुझे बैठा दिया। उसके बाद वो मेरे चेहरे की तरफ़ में आया और देखने लगा। मैंने उससे कहा, "भाईसाहब ये नोर्मल होना क्या होता है? ये चेहरा नोर्मल है ये कैसे पता चलता है? हम हर तस्वीर में अपनी अदा दिखा सकते हैं अलग-अलग भाव भी ला सकते हैं तो ये पासपोर्ट साइज़ की तस्वीर में क्यों नहीं?"

उसको पता चल गया था कि आज उसको क्या कहा जा रहा हैं। वो कुछ ना बोलते हुए बस, मेरी तरफ़ देखकर हँसने लगा। फिर बोला, "ये बताया नहीं जा सकता सर, पर हाँ मैं जो तस्वीर खींचूगा वो नोर्मल होगी, एकदम आम आदमी की।"

वो ये कहते हुए मेरी तरफ में आया और मेरी कमीज़ ठीक करते हुए बोला, "सर आप बस, मेरी तरफ देखिये। चेहरे को एकदम ढीला छोड़ दिजिये। आँखें एकदम सामने। जब तक मैं ना कहूँ पलक मत झपकना। अपनी बॉडी को थोड़ा हल्का किजिये, हाँ एकदम सही। सीना टाइट कर लिजिये। हाथों को अपने घुटनों पर रख लिजिये। चेहरा थोड़ा नीचे की तरफ, गर्दन का कंठ नहीं नज़र आना चाहिये। आँखें बड़ी मत किजिये, एकदम रिलेक्स होकर बैठिये। एक मिनट में बस, आपका फोटो खिंच जायेगा।"

वो मेरी कमीज को दोबारा से ठीक करते हुए वापस अपनी जगह पर गया। उसकी दूरी लगभग चार फीट की थी। एक बड़ा सा कैमरा मेरे ऊपर ताना हुआ था और बगल में जलती लाइट मेरे मुँह पर पड़ रही थी। मेरा चेहरा लगभग चमक रहा था। ऐसा लग रहा था की जैसे जीरो वॉट का बल्ब मेरे चेहरे पर ही जल रहा हो। इसके बाद मे दो बार कैमरे का फ्लैस मेरे चेहरे पर पड़ा और तस्वीर खिंच गई।

वो मेरी तरफ मे देखते हुए बोला, "लिजिये सर खिंच गई आपकी नोर्मल तस्वीर।"

इस बार मैं हँसा और उससे कहा, "भाई साहब एक बात बताइये ये कौन सा वाला नोर्मल है? डॉक्टर जो कहता है वो वाला नोर्मल? या उस सरकारी आदमी ने जो माँगा वो वाला? फ़िल्मों में जो नज़र आता है वो वाला या आपने जो खींचा वो वाला?"

फोटोग्राफ़र बोला, "सर, ये सारा है। ये वो भी है जो डॉक्टर कहता है और वो वाला भी है जो उस सरकारी आदमी ने माँगा था और ये वो वाला भी है जो मैंने खींचा है। बेसिक्ली ये नोर्मल इंसान वो है जिसकी डिंमाड सबसे ज़्यादा है। मगर ये ही नहीं मिलता।"

"तो क्या मिलता है भाई साहब यहाँ?" मैंने कहा।

फोटोग्राफ़र बोला, "यहाँ पर सब कुछ मिलावट का समान मिलता है। ये मिलावट आपको पता है क्या है। यही तो मस्ती है। यहाँ पर हर कामों मे अलग-अलग चीज चाहिये। तो लोग उसी हिसाब से बँट जाते हैं। जैंसे जो शादी के लिए चाहिये वे अलग है, सरकारी कामों मे अलग, पोज़िंग के लिए अलग, पोर्टपोलियों के अलग और अब तो हैंटीकेप के सार्टीविकेट के लिए भी अलग तो लोग भी उसी के हिसाब से अपने आपको बदल लेते हैं।"

"एक बात बताइये भाईसाहब, आपने ये अलग-अलग महकमों और कामों मे चेहरे बनाने की डिंमाड को कैसे जाना?" मैंने कहा।

फोटोग्राफ़र बोला, "सबसे पहली बात तो ये की मैं भी तो इसी दुनिया में रहता हूँ। इसलिए जो भी यहाँ होता है तो मेरे साथ भी होता है। दूसरा ये की, हमें चेहरों के भाव से, एक्ट से खेलना आना चाहिये तभी तो ये काम है, नहीं तो हमें आता क्या है और सही बात बताऊँ, वो ये की यहाँ पर ये खेल सबको आता है।"

मैंने कहा, "तो ये खेल हर साइज़ के फोटो के साथ खेला जाता है? किस साइज के साथ में कौन सा खेल है ये कैसे बन गया?"

फोटोग्राफ़र बोला, "मेरे हिसाब से तो खाली दो ही तरह के भाव हैं इस दुनिया में। जिसमे से एक हमने बनाया है दूसरा जो हमने नहीं बनाया। बस, उसे मान लिया है। पहला तो ये ही जो आपने खिंचवाया। पासपोर्ट साइज़ का खेल। नोर्मल फोटो, और दूसरा जो खुलकर आता है वो है कि किसी भी साइज़ में आप किसी भी तरह का भाव अपने चेहरे में ला सकते हो।"

"तो ये नोर्मल होना और बाकी का होना क्या है? क्या वो नोर्मल नहीं है?" मैंने कहा।

फोटोग्राफ़र ने कहा, "ये नोर्मल होना कुछ नहीं होता। ये सब बस, माँग है। सरकार को लगता की हम एक ऐसा चेहरा बनाके उसको दे जिसमे कुछ भी अलग से मिलाया ना गया हो। सरकार समझती है की आदमी मे रोना, हँसना, तेडूपंती या स्टाइल सब अलग से आई हैं। ये ऊपर वाले ने नहीं दी। तो सरकार वो चेहरा माँगती है।"

ये माँग के साथ में चेहरे का होना ये तो बहुत कस देता होगा। ये कसा हुआ भी ना लगे और खूबसूरत भी लगे ये कैसे करते फिर?" मैंने कहा।

फोटोग्राफ़र ने कहा, "सर, यही तो हमारा काम है। एक बात कहे आपसे, जब कोई अपनी फोटो खिंचवाता है तो वो हमेशा ये सोचता है कि जब वे अपनी खींची हुई तस्वीर को देखे तो उसे लगता चाहिये की उसका चेहरा ऐसा दिखता है। जो उसे शीसे में नहीं दिखता वो तस्वीर में दिखना चाहिये बस, कोई-कोई अपनी पासपोर्ट साइज़ की तस्वीर को ही बड़ा करवा लेता है। कभी-कभी तो फ्रैम भी।"

"आपको क्या है लगता है अभी तक जितनी भी तस्वीरें आपने खींची हैं उन तस्वीरों मे से कितनी नोर्मल है और कितनी नहीं?" मैंने कहा।

फोटोग्राफ़र ने कहा, "आपको अभी दिखाता हूँ। जैसे ये देखिये।"

उसने मेरे सामने काफी सारी तस्वीरें बिछा दी। जिसमे बहुत सारे लोगों की तस्वीरें थी। पहली फैमली फोटो थी। जिसमे एक आदमी ने अपने बच्चे को गोद मे ले रखा था और बीवी उसका हाथ पकड़कर उसके साथ मे खड़ी थी। इसे उसने नोर्मल कहा था, दूसरी भी इन्ही की तस्वीर दिखाई उसमे वो औरत कुर्सी पर बैठी थी और वो उसके पीछे खड़ा था उसके काँधों पर हाथ रखे। ये उसने स्टाइलिस्ट कहा था।

एक तस्वीर में तीन लड़के थे, एक बैठा हुआ था और दो उसके पीछे खड़े थे। एक के हाथ में हंटर था तो दूसरा उसकी तरफ में देख रहा था। तीसरी तस्वीर किसी स्कूल की थी। जिसमे चालिस बच्चो के बीच में एक टीचर बैठी है और सारे बच्चे सामने देख रहे हैं। एकदम सीधे। उन्ही में से एक लड़का अपने बालों में हाथ मार रहा था। वो उस तस्वीर में सबसे अलग ही नज़र आ रहा था।

ऐसी ही ना जाने कितनी ही तस्वीरें थी उसके पास में। जिसको वो अब बटवारे में टटोल रहा था। लेकिन ये बटवारा किसी काम का नहीं था। बस, अपने आँकड़े ठीक करने के जैसा ही था। लेकिन था मज़ेदार। मैं उसे उसी सोच मे छोड़कर चला आया पर वो बिलकुल सटीक था अपनी सोच पर। जैसे चेहरों के खेल मे वो बहुत आगे निकल गया हो। शायद यही उसका काम था। जिसमे वो अपने को भी देखता था। क्योंकि इस खेल का सबसे मंझा हुआ खिलाड़ी तो वही था।

मैं वहाँ से निकलते हुए बस, यही सोच रहा था की अब उस सरकारी अफ़्सर को मेरी तस्वीर नोर्मल लगे। फिर कहता कि लगेगी क्यों नहीं आखिर ये खींची किसने है?

लख्मी

No comments: