Wednesday, March 4, 2009

सर्वे की मुहीम

पहला दिन
26 फरवरी 2009, दिन गुरुवार।

पिछले कई सालों से चलती अफ़वाहों के बाद आज ये तय हो गया था की आज के दिन सर्वे की मुहीम शुरू हो गई। ये सर्वे, न ही जनगड़ना थी, न ही पोलियो का टीका देना था, न ही सफ़ाई अभ्यान था, न ही पाँच साल के बच्चों की जानकारी लेना था और न ही ये स्वास्थय को लेकर था। ये तो कुछ और ही था।

बस्ती के एकमात्र सरकारी कार्यालय यानि कम्यूनिटी सेन्टर की सुबह से ही सफाई होना शुरू हो गई थी। वहाँ जैसे ही थोड़ी भीड़ होनी शुरू हुई तो बस्ती के लोगों का भी वहाँ पर आना चालू हो गया था।

दोहपर के बारह बजे तो किसी को भी ये नहीं पता था कि यहँ होने क्या वाला है? लोग वहाँ पर यही देखने और समझने की उम्मीद लेकर चले आते। भीड़ कभी एक ही बार मे उमड़ पड़ती तो कभी वहीं पर रूकी रह जाती।

कम्यूनिटी सेंटर के कमरे में सर्वे करने आये आठ लोग थे। चार स्लम एमसीडी के और चार मोलाना आज़ाद इंस्टीटूयट के। मगर उनमे से ये कोई नहीं बताना चाहता था कि ये सर्वे किये क्यों जा रहे हैं? इसके बावज़ूद लेकिन हाँ जैसे ही सर्वे शब्द यहाँ बस्ती मे किसी के कानों मे दाखिल होता तो सीधा ध्यान बस्ती के टूटने की ख़बर बन जाता।

पिछले कई समय से ये सुना जा रहा था कि ये जगह जो दिल्ली मे उस जगह पर स्थित है जहाँ से एक तरफ पुरानी दिल्ली रामलीला मैदान है तो दूसरी तरफ मे दिल्ली का दिल कनॉटप्लेस है। इस जगह के ऊपर कई केस चल रहे हैं कोई इस जगह को अपनी तरफ मे खींचता है तो कोई अपनी तरफ। कभी ये जगह स्लम ही हो जाती तो कभी अस्पताल की जागीर। लेकिन ये बात तो तय थी के ये एक दिन यहाँ से टूटेगी जरूर।

यही जहन मे रखे यहाँ के लोग रोज़ सुबह जागते और रात मे सोते। आज उन सभी रातों और दिनों का हिसाब देने का समय दरवाजे पर खड़ा था। कई सच और झूठ के चलते ये मुहीम आज जोर पकड़ रही है।

सन 1975, 76 मे बसी इस जगह मे अब तक तो कई ऐसे समुह खड़े कर दिये थे की जिनके बीच मे घूसना किसी के लिए भी आसान नहीं है। कार्यालय के सामने खड़े वे सर्वे टीम यही सोच मे थी के कैसे बस्ती के अंदर घुसा जाये। तो पहले बस्ती के बड़े-बड़े स्थानीय नेताओ के साथ बातचीत करने की सोची जा रही थी। मगर इससे होता क्या?

हर कोई अपना ही तर्क देने और अपना ही तरीका बनाने की कोशिश मे लगा दिखता। इससे वे लोग कहाँ दिखते जिनको इस खेल के बारे मे पता ही नहीं था। वे लोग जो, जिनसे जैसा कागज़ माँगा जाता, जिस समय का कागज़ात माँगा जाता वे बिना कुछ सवाल किए पकड़ा देते। उनमे ये समझ कैसे डाली जाती के उनको वो कागज़ात दिखाना है जिसमे ये साबित हो जाये की आप यहाँ पर कितने पुराने हो? इसके लिए क्या तरीका अपनाया गया था इस स्थानीये नेताओ ने और सर्वे टीम ने?

बस्ती मे अब तक तो ये बात पूरी तरह से फैल गई थी कि कुछ सरकारी लोग बिल्डिंग (कम्यूनिटी सेंटर) मे आये हुए हैं। बस, वे चाहते क्या हैं वो कई रूपों मे पहुँचा। कोई कहता राशनकार्ड बनाने वाले हैं, कोई कहता वोटर कार्ड वाले है, कोई कहता फोटो खिंचेगी तो कोई ना जाने क्या कहता। मगर वे सही बात बस्ती मे ठीक से नहीं पहुँची थी जो अब आने वाले महीने मे होने वाला था।

आज पूरे दिन एक नया शौर और बिल्डिंग के बाहर भीड़ लगातार बनी रही। अब ये एक दम से आपके घर के दरवाजे पर खड़े होकर बोले की अपना स्थानिये पते का कोई कागज़ात दिखाओ तो आप क्या दिखाओगे? और क्या उनसे पूछोगे?

ये कठीन दौर यहाँ एलएनजेपी बस्ती मे शुरू हो चुका है....

लख्मी

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