Saturday, March 21, 2009

मुलाकातों की दूनिया

लोग कहते हैं की मैं गुमशुदा हूँ
मेरा कोई पता नहीं
इसलिए मैं लापता हूँ।

मैं ढूँडता हूँ किसी को इस शहर -ए- महफ़िल में
कभी वो पास होता है, कभी वो दूर होता है
मुलाकातों की दूनिया में
मेरा छोटा सा किस्सा हैं।

कोई कहता है की मैं एक व्यक़्ति हूँ
कोई कहता है की मैं एक शख़्स हूँ
कोई कहता है की मैं एक आदमी हूँ
तो कोई कहता है की मैं पागल हूँ
मगर मुझे लगता है की मैं काज़ल हूँ

जो आँखों में सजता है शाम को और सुबह उन्हीं आँखों से उतरता है।
कोई माने या न माने मेरी यही दास्ताँ है।

वक़्त के कोरे पन्नों में मेरा नाम खून की शाही से लिखा है।

कोई मुझे मलंग कहता है, कोई मुझे कटी पतंग कहता है
कोई मस्ताना कहता है , कोई दिवाना कहता है
मगर मेरे दिल से जरा पूछो, उसे कहाँ चैन मिलता है?

किसी छाँव तले बैठ जाऊँ तो क्या गम है
किसी का बन के रह जाऊँ ये क्या कम हैं।

मैं भूल जाऊँ की कहाँ से आया था
कहाँ जाना है न ये पता था
कहाँ जाना है न ये पता है , किसे पाना न ये पता है।
मेरी तबियत तो बस, यारों बहकता सा इक नशा है।

कभी दूरी को जीता हूँ, कभी सपनों को पीता हूँ
मेरी हक़ीकत बस, यही है की मैं ख़ुद को भूला के जीता हूँ

मैं जब तक हूँ मेरी अदा है
उसके न जाने किसी किसी क्या पता है।
लोगों को बस, ये पता है की लापता हूँ
मगर मैं ढूँढता हूँ किसी को इसलिए इस दूनिया में खड़ा हूँ।

लोग कहते हैं की मैं गुमशुदा हूँ
मेरा कोई पता नहीं इसलिए मैं लापता हूँ।

राकेश

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