Saturday, March 21, 2009

परछाई मे बहते अक्श

जगह कोई भी हो उस में समय की रफ़्तार अपनी परछाइयाँ छोड़ती जाती हैं। समय का आकार चीज़ों, मौज़ूदगी के बिखरे हुए बिन्दुओं को अपनी तरफ खींच लेता है फिर समय के सम्पर्क में आने के बाद समय का आकार गहरा हो जाता है।

समय का आकार एक छवि देता है। छवि में प्रतिभाएँ होती है। जो परछाई को जन्म देती है। कोई रोशनी उस पर पड़ती है तो परछाई से टकराती है। टकराने से दोनों में स्थिरता पैदा हो जाती है। जो परछाई से समय के आकार को जकड़कर रखती है।


दिनाँक- 19-03-2009, समय- रात 8:00 बजे

राकेश

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