Tuesday, April 7, 2009

वो कल्पना थी या हक़िकत थी मगर

कोई शुकून मेरे ओर-पास है
मगर वो साया भी कहीं मुझमें है।
मैं अकेला सा हूँ मगर, कोई तो साथी साथ है।
छू जाता है किसी का अहसास मगर,
किसी धड़कन की आवाज़ है।

मैं किसी का नहीं मगर
कोई मेरा तो मगर- जो पास से गुजर जाता है
जैसे कोई आँधी हो उधर

मेरी तन्हाइयाँ थी बेकदर, न थी किसी को कदर
मेरे शरीर को न शरीर समझा
जख़्म दिए मुझे इसकदर।

वो कल्पना थी या हक़िकत थी मगर
कोई तो चेहरा था जिसको अपनी थी कदर
तिनका-तिनका बिखर गया दिल-ए-आशियाना
न तुम्हे ख़बर न हमें ख़बर।


दिनाँक- 31/3/09, समय- दोहपर 2:40 बजे, जगह- सादिक नगर

राकेश

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