Friday, January 22, 2010

हू-ब-हू बनी तस्वीर

बात - ओहदे या शरीर को नहीं मानती

SMS – किसी ने आपको कोई बात कही वो बात जो आपकी ज़िन्दगी और फैसलों मे बहुत अहमियत रखती है"

अगर बात कहने वाला इंसान समाज मे बुरा यानी ( गेंगस्टर, वैश्या अथवा पागल ) कहलाया जाता है तो उसने जो बात हमसे कही है उसका महत्व हमारे लिए घट जायेगा? मैंने अपने समाजिक रिश्तो और कुछ दोस्तों से बात पूछी सभी के जवाबों में "हाँ" रहा। मगर इस हाँ के अलावा कुछ और नहीं। मैं थोड़ा परेशान हूँ। ये सवाल परेशानी में नहीं डालता बल्कि ये "हाँ" सोचने पर मजबूर कर देता है। तू कुछ कह सकता है?

SMS - मेरे जवाब में ये कतई "हाँ" नहीं है। अगर कोई गोली आपकी जान लेले तो ये नहीं सोचा जाता खासकर की मरने के बाद या घायल होने के बाद मे की ये गली किस जाती की बंदूक से चली है।

एक शख़्स का अदाहरण देता हूँ, “मजनू जी को अपने घर से बाहर यानी अलग रह रहे कई साल हो गए हैं। वो सड़क के किनारे बिना छत के रहते हैं। उन्हे नजदीक से जानने वाले उन्हे दीवाना कहते हैं और दूर से देखने और जानने वाले पागल कहकर उन्हे नवाज़ते हैं। जगह का मर्म और उसकी ऊपरी सतह को वो अपने पल-पल बनते अनुभव से बताते हैं। उनकी ज़ुबान में नज़र आती जगह किसी किताब के अक्स में भी नहीं होती।

अगर कोई दिवाना या पागल आपको अपनी जगह या घटनाओं से रू-ब-रू करवादे तो उस बात में अहमियत की गोटियाँ नहीं फैंकी जाती।

मजनू जी को लोग बुरा इंसान मानते हैं। अपने बच्चों को बहुत कम उम्र में जो अकेला छोड़ आये थे। मोल, अहमियत और कीमत (वैल्यू ) बात की होती है किस ज़ुबान, ओहदा और शरीर से निकली है ये नहीं देखा जाता। ये एक चश्मा है जिसे उतारा जा सकता है।महाभारत के कर्ण के शरीर से चिपटा कवज़ नहीं जिसे चीरा जा सके।

SMS - हम लोगों को जरा दूसरों के देखने और सुन्ने से हटकर अपने खुद नजरिये से सोचकर समझने की जरूरत है। क्योंकि कानों मे पड़ा हर शब्द सम्पूर्ण नहीं होता। मुँह से निकली हर बात सच नहीं होती। समाज में कई संबन्ध होते है जिनके रिश्तों की कसौटी पर हर किसी को खरा उतरना होता है।

हम एक समाज में रहकर भी अपने लिये अपना बनाया वातार्वण चहाते हैं। जिसके लिये मन मुताबिक करने की ठान लेते हैं। मगर समाज में रिश्तों को बनाये रखने और उनको अपने पास रखने के लिये हर मोड पर दूसरों को अपने काबिल और सब में घूले-मिले रहने के लिये अपने इरादों को भूलना पड़ता है।

हर कोई ये कर ही पाता और जो करता है वो रिश्तों के दायरे से बहार हो जाता है। उसकी गिनती आम आदमी नहीं होती हो दूसरों के जैसे सा नहीं मना जाता कहने को तो वो भी इंसान का ही एक हम शक्ल होता है पर सिर्फ हम शक्ल हू-ब-हू नहीं। उसका जीवन उस हू-ब-हू बनी तस्वीर की तरह होता जो सच और झूठ के प्रतिक से अलग होता है। जिसकी कोई पहचान नहीं होती। हाँ, हम सोच सकते हैं कि इंसान की बनाई इस दूनिया में इंसान की ही बनाई बहुत सी पहचान है। जो इंसान को ही विभाजन करती है। इस लिये शायद आज जिस तरह से जीवन को देखा जाता है वो महज एक धूंधली तस्वीर है या फिर कह सकते है की मानवता पे गिरा वो पर्दा है जिसकी आढ़ में मानव का ही अपमान होता है। इस लिये आज जबकी हमारे सामने हमारे ही जैसा शख़्स खड़ा होता है तो हम उसे कैसे नहीं पहचान पाते। ये तो वो ही बता सकते है जो इंसान का बँटवारा करते है। बोल, शब्द और किसी के उपर कही बात क महत्व की तो आप रोज किसी न किसी से कितनी ही बाते करते है कितने ही सवाल और जबाब करते है।

रास्ता पूछने पर अगर कोई सही या गलत बता दे तो आप घर वापस आना तो नही भूलते। फिर किसी के कुछ बोलने या समझने से आप को क्यों फर्क पड़ता है आप का अपना विश्वास तो अटल है वो ढ़गमगा नहीं सकता फिर क्यों दूसरे की गवाही?


राकेश

2 comments:

Udan Tashtari said...

सही विचार किया है.

Ek Shehr Hai said...

thanks ,aap ki raaye humari liye mahettwporn hai.


rakesh