Friday, January 15, 2010

अनेक अंत: शेषो से -

कोई जगह या हम अगर किसी चीज को उभारते हैं तो उसी वक़्त उसी चीज़ और सोच को ब्लॉक भी कर देते हैं।

आगे बढ़ने की राह हर वक़्त किसी न किसी चीज़ को ब्लॉक करते हुए जाना है। ब्लॉक का मतलब किसी सोच या चीज़ का अंत नहीं होता और न ही उसकी कोई रोकथाम है। बल्कि वे सोच आगे के सवालों को खोलने और उनको गहरापन देने के समान होती है।

हर जगह, हर इंसान, हर काम के उपरांत, मध्धय और अनेक अंत: शेषो से बने होते हैं। हर चीज़ कई सारे कणों का जमावड़ा होती है। उसी चीज का चेहरा उन्ही के छोटे-छोटे अणुओं से बना होता है और हर किसी ने अपनी जगह को बखूबी से संभाला हुआ है। जो जहाँ पर रुक गया वही पूरे चेहरे का हिस्सा बन गया। हम उन्ही हिस्सों से आगे बड़ते हैं और अगले हिस्सों तक जाने के लिये अपने कदमों को मजबूत बनाने लगते हैं।

क्या हमें पता है कि कोई जगह कितने सवालों और चीज़ों की बुनी धारा होती है? लोग, उनका जीना, उनका चलना, उनका अपनी जगह बनाना, काम और रिश्ते, चीज़ और जिम्मेदारियाँ। अगर हम जगह, लोग और जीवन को दो अलग शब्दों मे कहे तो - जैसे : किसी जगह का समाजिक जीवन और बोद्धिक जीवन क्या है?

इन दो धाराओं को हम जगह की महीम बुनाई मे महसूस कर सकते हैं। इन दोनों के जरिये जैसे - जैसे हम आगे बड़ते जाते हैं वैसे - वैसे किसी चीज़ को पीछे छोड़ते जाते हैं। जो पीछे छुटा वे किसी सवाल की बुनाई मे था और जो आगे मिला वे पीछे छुटने वाले से किसी बहस मे था? इस मजबूत सवाल से हम दोनों के बीच अपनी जगह बना पाते हैं।

किसी चीज़ का बन्द हो जाना या किसी जगह के खुले दरवाजों को दोबारा नहीं खोला जा सकता। इस बुनियादी विचारधारा के अहसास से हम जगह के साथ-साथ चलने लगते हैं।

लख्मी

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