Wednesday, June 23, 2010

कट्टरपंथी द्वार

लिखना क्या है? और लिखने की कग़ारें क्या हैं? हम उनको कैसे लिखते हैं जो हमारी याद से बाहर है और उनके कैसे जो याद में होने के बाद भी बाहर है?

रिश्तों की कट्टरपंथी और उसके चेनसिस्टम में रहकर क्या किसी किरदार के खोने को लिखा या बयाँ किया जा सकता है? असल मे लिखना खाली ये ही नहीं कि जिस क़िरदार से दुनिया का दर्शन करने की चाहत बनाई है उसी को दूर या पास के खेल में लेकर लिखना होता है। बल्कि लिखना खुद के साथ बहस और खास लड़ाई को उभार पाने की कोशिश से भी उत्पन्न होता है।

शहर के बीच मे और रिश्तों के गठबंधन से बाहर निकलकर सोचने की कोशिश की, कोई किरदार अपने अकेले होने को खोने तक का अहसास करेगा तो शायद वो उस माहौल को बयाँ करने लगेगा जो भरपूर है। जैसे किसी को बताने से पहले उसके तोड़ को बताया जा रहा है। जैसे - किसी के होने और किसी के खोने के बीच में क्या उत्पन्न होता है उसको पीछे छोड़ा गया हो लेकिन सवाल यहीं पर बनता है कि क्यों? क्या किसी भरे पूरे माहौल के बिना किसी के होने के अहसास को लिखा जा सकता है?

एक साथी की डायरी पढ़ते समय महसूस हुआ की कुछ चीजें इन्सान के अंदर बसी हैं। जो स्वभाव और बर्ताव में नहीं दिख सकती। उसे पहले खुद ही महसूस किया जा सकता है उसके बाद वो बाहर निकलती है। जो इस जीवन के दर्शन में उभरता है। बहुत महीम सी लकीर है जिसे कभी तोड़ा या लम्बा नहीं किया जा सकता बस, महसूस किया जा सकता है।

हम रिश्तों में इतने क्यों बसे हैं? क्या रिश्तों के अलावा किसी चेहरे, शरीर और सादगी को देखना हमारे लिये मुस्किल है?

जिस अजनबी रिश्ते से चेहरा आखों में अपनी जगह बनता है वो धीरे-धीरे घर की ग्रफ्त में आने लगता है। इस ग्रफ्त से बाहर अगर जीवन और जीवन के सफ़र को देखा जाये तो जिंदगी कितनी ताज़ी रहेगी? हम जानते हैं की हमारी गोद में आने से पहले से ही दुनिया में नया कदम रखने वाला शरीर अनेकों रिश्तों से बंध जाता है, उसका अजनबी अहसास कहीं खोता जाता है। लेकिन इस दुनिया में और इस जीवन के मोड़ों में लगता है जैसे रिश्तों को आज़ाद छोड़कर अपनाना जीवनवार्ता को नई कहानियाँ और चेहरे दे डालता है।

इसे रिश्ते की तरह अगर न देखा जाये तो ये वो सम्भावनाएं खोलती है जिसमें हर सुबह ताज़ी होगी। कोई अपने दिन को अपनी जिन्दगी मे छाप छोड़ने के अहसास मे जीता है जिसके लिये जीना, दिन का ढ़लना और दिन का उगना हर तरह से जीवन की विषेश पलों मे ले जाता है उससे मिलने का अहसास क्या है? उसके माहौल बयाँ करने से पहले उसे इस महसूसकृत जीवन से मिलने न्यौता कुछ खास है।

लख्मी

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