Monday, September 12, 2011

तीसरा दिन : ओखला

यहां से बाइबास होकर निकलना होगा...

ये ओखला सड़क जहाँ से दो तरफ को बड़े-बड़े रास्ते निकल रहे हैं। एक जो वापस साऊथ दिल्ली में, गोविन्दपुरी को जाता है और दूसरा जो बदरपुर बोर्डर इलाके को जम्प करके नोएडा कालिन्दीकुंज के लिये प्लान किया गया है। ये रास्ता अन्डरग्राउण्ड होगा, अभी खुदाई का काम चल है।

ये जगह अपने उद्योग के नाम से और बड़ी निजी उद्योगपति के नाम से जाने जाती है। ये यहाँ बाईपास बन है। जो क्रॉउन होटल से नोएडा जाने में मदद करेगा। इस बाईपास को आईएसबीटी कश्मीरीगेट से जोड़ दिया जायेगा यानी शहर में होने वाले बड़े कन्टेनरों के वाहक ट्रक और क्रेन वगैहरा शहर के बाहर से होकर निकलें। जाम लगने का एक कारण ये भी होता है। जहाँ आबादी के हल्के वाहन अपनी सुबह शाम की जिन्दगी जीते हैं उनका रास्ता साफ हो जायेगा।

मौसम गर्म, हवा और पानी सड़क पर फैला हुआ। सड़क में छोटे-छोटे गढ्डे दिखाई पड़ रहे थे। जिनमें पानी भरा हुआ था। वहाँ एक कुत्ता हाफ़ता हुआ आया और गढ्ढे के पानी को पीने लगा। उसका हाफ़ना बता रहा था कि वो बहुत देर से प्यासा है। यहाँ की कुछ क्या सारी सड़कें टूटी और खराब हैं पैदल चलना भी मुश्किल है। वैसे तो सड़के ही बता देती हैं कि उनके ऊपर से निकलने वाला हर रोज का वाहन किस रूप और आकार का है। सड़कों पर फैला मलवा जिसको एमसीडी के लोग एक कोने में जमा कर देते हैं फिर उनमें से वहाँ के मलवा बैचने वाले पीन्नियाँ, थरमाकोल, प्लास्टिक छाँट कर ले जाते हैं। जो सामने फैक्ट्रियों में से आता है। उसकी पैकिंग का वो माल जिसे गन्दगी कहा जाता है। वहीं दूसरी ओर पैकेजिंग उद्योगों, प्रिटिंग प्रेस, मशिनरी निर्माता, कॉल सेंटर, बहुराष्ट्रिय कंपनियों के कार्यालय, बैंक और अन्य लोगों जैसे तैयार किया निर्यात को और उद्योग के अन्य क्षेत्रों के अलावा चमड़े के निर्यात कों में शामिल कंपनियों, कॉल सेंटर, शोहरूम और मीडिया समूह आप्रेशनों का भी कार्यस्थल है।

औद्योगिक क्षेत्र मुख्य दक्षिण दिल्ली में ओखला क्षेत्र ग्राम, के नाम पर है, साथ आसपास के इलाकों के रूप में अब जाकिर नगर, जाकिर बाग, जामिया नगर, अबुलफजल एंक्लेव, शाहीन बाग, कालिंदी कालोनी और कालिंदी कालका जी एक्सटेशन डी.डी ए, गोवीन्दपोरी, डीडीए, जेजे कॉलोनी, बदरपुर तुगलकाबाद जैसे इलाकों से घिरा है।

(भाषाई साक्षरता) के तौर पर मुझे यहाँ कई तरह के लोग मिले जो भारत की अलग-अलग स्टेट से आये हैं। जो काम भी अलग-अलग करते हैं कुछ अपने साथ कोई हुनर लेकर आये थे और कुछ ने यहाँ की मौजूदा स्थितियों से सीखा। सब के जीने के ढ़ग में कई तरह के संसार की छवियाँ दिखी जो अपने वज़ूद के साथ रहकर हासिल होती है। फैक्ट्रियों के पीछे सर्वेन्ट क्वार्टस बने हैं और कहीं तिरपालों में रहने का ठिकाना बनाया गया है। जो भी चीज़ सामान फैक्ट्रियों से रिजेक्ट हुआ उसे फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों ने अपने जीवन में ढ़ाल लिया है। कभी छत के रूप मे कभी दिवार के रूप में तो कभी, अपने आराम फरमाने की जरूरत के रूप में। वैसे मलवे के रूप में मुझे कई तरह का मटेरिअल्स देखने को मिला, जिसमें पुरानी पैकिंग की पन्नियां, कागज व गत्ते के डिब्बे, थर्माकोल के नामूने को खाँचे। जिनको किसी तरह किसी भी फैक्ट्री में काम करने वाला मजदूर अपने उयोग में ले लेता है। यहाँ के हर मजदूर को रहते हुए 50 सो साल हो गये हैं। यहाँ आकर काम करने वाले लोग की संख्या बहुत है।

राकेश

No comments: