Saturday, May 5, 2012

किनारो के बीच में नाव

मायनो से बाहर की दुनिया को रचना। जो आदतन छवि को नकार रही है और उसे ना बनाने मे मसरुफ़ है बल्कि दुनिया में किस तरह की रचना को रखना है, जहाँ पर दुनिया वश से बाहर की लगे और सबको इसमें घुसने के अपने साधन बनाने हो। दुनिया को नया बनाना नहीं है और पुराने को तब्दील भी ना करना हो, इसके बीच में बहते जीवन को देखने का फ्रैम क्या है हमारे पास?

दो ठोस किनारो के बीच में बहता पानी (तरलता) अगर दोनों किनारो को आधार ना माने तो फिर दुनिया में अपनी ही सोच का कुछ अंश जोड़ना क्या है?
जोड़,जो कुछ सत्यापित करने के लिए नहीं हैं।
जोड़,जो नियमितता का तोड़ है।
जोड़, जो किसी कोलिज़न से मिलकर अपनी चरम सीमा को बनाती है।
जोड़, जो कभी मिलने के लिए बना ही नहीं है।
जोड़, जो किसी अदृश्य छवि/जादु को दिखाने की चाहत या चैलेंज में है।

कारवां जिसकी संख्या की गिनती अनेकता और विभिन्नता दोनों में आंका जाना मुमकिन नहीं है, वो कारवां हर किसी को अपने साथ लेकर चलने का न्यौता देता है। मगर उसके साथ में न्यौता है,जो दोनो के मिल जाने के मुवमेंट से बनता है। उसकी आगोश में सबका हो जाने का सेन्स देखने को मिलता है। जीवन का रस ही सबका होकर,सबके बीच मिल जाने में है।

कारवां कभी अपना नहीं होता,पराया नहीं होता और इसके साथीदार ना अपने लिए कुछ बनाने में होता है और ना किसी के लिए कुछ रख देने के दम पर। इस झुंड की कल्पना का ख्याल उन नये आयामों और रिश्तो को जन्म देने में खुलता है,जो सामाजिकता और नैतिकता के ख्याल से परे होते हैं। आसामान में उड़ान भरने का ख्याल,हकीकत है या नहीं है,होगा या नहीं होगा के बंधन से परे,साथ को जीकर आगे निकल जाने में है। आगे निकल जाना सिर्फ़ खुद की बोडी को लेकर निकल जाना नहीं है,वो निकल जाना कारवां से छूटकर नये कारवां और काफिले को तैयार करने मे है।

हम अपनी दुनिया को हकीकत है ये मानकर जीते है और ख्याल बनाना और ख्याल आना,ये दोनो ही हकीकत से बहस में रहते है। ये हकीकत बन जाये हम ये भी नहीं चाहते और ये झुठ है,इसमें भी हामी नहीं भरते है। इन दोनो को दुर और पास लाकर,बहस करवा या टकरा,इनके बीच से अपने जीवन का मजा बनाते है। मैं अकेला हूँ, मुझमें भीड़ है..ये एकान्त से विशालता में जाने का सिर्फ़ चिन्ह है। मैं ही सबकुछ हूँ या मुझमें ही सब बसा है,ये दोनो चीज़े मानकर हम स्वंय को गिरावट में ले जाने की क़गार तक आते है। बाहर और अन्दर दोनो के बीच के क्लेश और पल में निर्धारण बनता है,फैसले के लिए नहीं बल्कि बनाने के लिए। दोनो एक दुसरे से होते हुए निकलते है और वापिसी के चिन्ह छोड़ते हुए जाते है। निकल जाना और वापिसी की मुमकिनता पुराने ढांचो को तोड़ देने की ललक से बनती है।

लख्मी

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