Monday, October 15, 2012

चार दीवार के बाहर

कभी "रैनबसेरा"

अनेक मे होना - उन अनेक में के बीच जो जीवित है।

लगा - जहां हर कोई किसी के भी नजदीक हो सकता है, दूरी बना सकता है, सुन सकता है और दूर से सुनने के अहसास ले सकता है। कई बातें एक साथ चल रही है।

सही मायने में - जब कोई अपने किसी वक़्त को दोहरा रहा होता है तो उसी वक़्त कई और जीवन दोहराने मे चल गुजर रहे होते है। एक दूसरे से मिक्स होते हुए। किसी बड़ी आवाज़ को रचते हुये। समय को भूलाते हुए या समय को याद बनाते हुए। स्पेश किसी आर्केश्ट्रा की तरह हमेशा बज रहा है।




रात में गली के कौने का माहौल

मिलने वाले एक दूसरे के साथ पहचान में है। कई टाइम से मिल रहे होते हैं। एक दूसरे को सुन रहे होते है। इतनी पहचान के बाद भी वे हर मुलाकात मे हो रही या निकलती बातों से हमेशा अंजान रहते हैं। मिलने के स्वाद इसी मे छुपा है। माहौल कभी एकांत मे नहीं होता। ये जरूर है कि वे किसी एकांत के लिये बनाया व चुना जरूर जा रहा है। माहौल उस बाघी दुनिया मे उतार देता है जिसने किसी रात तो फैसला किया कि इसे चारदीवारी या छुपने की जगह पर नही बिताया जायेगा।



ट्रेन के रद्द हो जाने से पहले - स्टेशन का वेटिंग रूम
जहां लोग जितने भी समय रूक जाये मगर, हमेशा हमसफ़र ही बने रहते हैं। जो कभी भी एक दूसरे से बिछड़ सकते है। खुद में सबको लेकर।



जनमासा -
जहां पर कुछ समय के लिये लोगों को रोका जाता है
जैसे - किसी बरात को, किसी सरकारी महकमे को, मुसाफिरों को,



मार्किट के बीच में बना शीशमहल
यहां पर सिर्फ लोग रात गुजारने के लिये आते हैं। वे किसी अकेले का नहीं होता।



मण्डी मे बना चौकीदार का कमरा
जो कभी घर नहीं कहलाता और ना ही मण्डी।



किसी का कमरा

बिना दिवारो के है या फिर कई खिड़की दरवाजे हैं जहां से किसी एक ही गुट या माहौल को कहीं से भी, कभी भी हर कोई देख सकता है या देख रहा है।



सुनते हुए महसूस हुआ की हर सुनने पर इस जगह की कल्पना बदल जाती है। निजी बातें नजदीकी बड़ाती जाती है और समानो को यहां से वहां करती आवाज़ें और नजदीकी में चली आती है। निजी बातें रिलेशपन में डूब रही है और दूसरी ओर सक्रियेता का बड़ता वज़न है।

एक पोइंट पर आकर लगता है वो कमरा जहां पर हम रोज जाते हैं और रूकते हैं। वे हमारे जाने से पहले क्या होता है? उसके सामने से गुजरने वाले, उसपर कोई काम करने वाले, उसके बगल मे रहने वाले के क्या? हजारों रूप एक स्पेश अपने मे बसाये हुए है। असल मे देखने वाला, बरतने वाला, सुनने वाला किस भाव से उससे मिल रहा है से भी स्पेश के प्रति छवि की रूपरेखा बदल जाती है।

लख्मी

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