Monday, December 17, 2012

एक कामग़ार शहर में

कोई सड़क पार कर रहा होगा
कोई गाड़ी को धक्का लगा रहा होगा
कोई नाले किनारे बैठा बीढ़ी पी रहा होगा।
कोई झूले को धक्का मारकर ले जा रहा होगा।
कोई टेंट उखाड़ रहा होगा।


कोई खेलों के लिए सड़क पोत रहा होगा।
कोई बस का इंतजार कर रहा होगा।
कोई सड़क के किनारे लगे पेड़ के नीचे पसीना पौंछ रहा होगा।
कोई स्टेशन के गेट पर खड़ा खिड़की खुलने का इंतजार कर रहा होगा।


कोई बस के पीछे लटक रहा होगा।
कोई कांधे पर बोरी लटकाए कुछ बीन रहा होगा।
कोई अपने हाथों से दूसरे हाथों में पेम्पलेट बाँट रहा होगा।
कोई बीआरटी कॉरिडोर को डर-डर के पार कर रहा होगा।
कोई सड़क पर लगे बोर्ड पढ़ रहा होगा।
कोई साइकिल की उतरी चैन लगा रहा होगा।
कोई पानी की रेहड़ी के छाते के नीछे छुप रहा होगा।
कोई पैदल पथ में कहीं सो रहा होगा।


कोई खम्बे पर चढ़ा होगा।
कोई भरी धूप में चिल्ला रहा होगा।
कोई उस चिल्लाते हुए कामग़ार को देख रहा होगा।
कोई आटो के मीटर की रेटिंग देख रहा होगा।
कोई टूटी हुई चप्पल से चलने की कोशिश कर रहा होगा।
कोई बस के गेट पर लटका होगा।
कोई साथ वाली लड़की को देख कर मुस्करा रहा होगा।
कोई किसी को लवलेटर दे रहा होगा।
कोई सिनेमाहॉल के बाहर बैठा होगा।




कोई सवारी उठाते आटो में फँसकर बैठा होगा।
कोई सड़क पर अपनी जेब से गिरा रूपया खोज रहा होगा।
कोई किसी की साइकिल पेंचर कर रहा होगा।
कोई किसी खड़ी गाड़ी के होर्न को बार-बार बजाकर भाग रहा होगा।
कोई कुत्तों से डरके गली में से निकल रहा होगा।
कोई किसी खिड़की पर खड़ा होगा मौसम को कोस रहा होगा।
कोई नौकरियों के फोर्म में अपने मुताबिक कुछ तलाश रहा होगा।



कोई छोले-भटूरे की दुकान पर खड़ा जैब टटोल रहा होगा।
कोई बस स्टेंड पर बैठा पेंटिग कर रहा होगा।
कोई धूप में अपनी किताब सुखा रहा होगा।
कोई बस स्टेंड पर लेटा किताब पढ़ रहा होगा।
कोई गली के कोने पर गुट में बैठा कोई अधूरी कहानी सुना रहा होगा।
कोई किसी दीवार पर रात में कुछ लिख रहा होगा।
कोई स्ट्रीट लेम्प की रोशनी में दीवारों पर पोस्टर चिपका रहा होगा।


कोई बाहर खड़े रिक्शे पर अपने सोने का इंतजाम कर रहा होगा।
कोई तेज हवा में दिया जलाने की कोशिश कर रहा होगा।
कोई किसी दरवाजे से कान लगाकर कुछ सुनने की हिमाकत कर रहा होगा।
कोई अस्पताल के बाहर खड़ा दुआ पढ़ रहा होगा।
कोई गले लगाने के लिये किसी को ढूँढ रहा होगा।
कोई बारिश से बचने के लिये कोई ओटक तलाश रहा होगा।
कोई किसी से माचिस मांग रहा होगा।


कोई वहाँ पर खड़ा होकर सोच रहा होगा की किसकी शक़्ल देखकर निकला था घर से।
कोई अपनी दुकान उठा रहा होगा।
कोई अपने घर का छप्पर ठीक कर होगा।
कोई देख रहा होगा उसके जैसे कितने लोग हैं।
कोई बंद होते मेले के सामने खड़ा है।
कोई रेडलाइट पर किसी का हाथ पकड़ने के लिये खड़ा है।
लख्मी

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