Monday, January 6, 2014

सिर्फ देखने वाला श्रौता


हमारी आज़ादी जो हर चीज को साथ लिये उड़ने की सोचती है। वो आज़ादी हमें हर जगह भले ही ना मिले मगर वो अपने जाले सी इच्छाओं से हर पल को झपटना चाहती है। साथ ही यह भी महसूस कराती है कि हर जगह, वस्तु, रिश्ता उसी की लपेट में है। इच्छाओं से बाहर कुछ नहीं दिखाती। पर उस माहौल से अनछुई रहती है जहां पर उसके रिश्ते उसे जान लेने का दावा करते हैं। उसी एक तरह के माहौल और उसके दायरे को भेदने के लिये अपने से बाहर जाती है। और सिर्फ देखने वाला श्रौता बन अपनी भाषा तलाशती है। अन्दर और बाहर के घेरे में शख्सियत अचानक से मिले व छीने गये मौको को अपनी आज़ादी का परिणाम मानकर उसका भरपूर अहसास करती जाती है।

अचानक से मिले व छीने गये मौको के घेरे से बाहर क्या है?

राकेश

No comments: